क्या पता कब तुम्हें और एक, आशियाने की जरूरत पड़ जाए ? क्या पता कब तुम्हें और एक, आशियाने की जरूरत पड़ जाए ?
मझधार में खड़ी तेरी नाव को लिखूं या फिर अपनी ज़िंदगी के गुलज़ार को लिखूँ! मझधार में खड़ी तेरी नाव को लिखूं या फिर अपनी ज़िंदगी के गुलज़ार को लिखूँ!
कुछ किताबों में, कुछ दीवारों पर, लिखीं हैं मेरी ख्वाहिशें कुछ किताबों में, कुछ दीवारों पर, लिखीं हैं मेरी ख्वाहिशें
उन खुशनुमा पलों में शायद उनको याद हमारी आती होगी। उन खुशनुमा पलों में शायद उनको याद हमारी आती होगी।
ज़रा से प्यार को भी बहुत समझो और सामने वाले से मिली उपेक्षा को भी मत सहो ज़रा से प्यार को भी बहुत समझो और सामने वाले से मिली उपेक्षा को भी मत सहो
पांच वर्षों तक शक्ल नहीं दिखाते ये नेता फिर से घूम रहे गली गली पांच वर्षों तक शक्ल नहीं दिखाते ये नेता फिर से घूम रहे गली गली